कुकूणक रोग :=> विभिन्न भाषाओं में नाम :=> हिंदी किथैवा अंग्रेजी कंजक्टिवाइटिस कन्नड़ मवकल अरेगन्नु मलयालम कुटि्टकलकुल्लकन्नुनोवु असम कुकुणक मराठी कुकुणव तमिल योगिनिसवी थविथम् तमिल योगिनिसवी थविथम् तेलगू आविरी लक्षण :=> कुकूणक दूध पीने वाले बच्चों का रोग है। इसमें रोगी का वर्त्म (पलक) सूजन वाला, लालिमा, कंडू (खुजली) और पानी बहने वाला होता है। बालक लगातार अपना ललाट (माथा), नेत्र (आंख) और नाक रगड़ता रहता है और धूप नहीं देख सकता है। विभिन्न औषधियों से उपचार=> 1. आमलकी फल : आमलकी फल त्वक (चूर्ण), लकुच फल और जम्बू के पत्तों के काढ़े से आंखों को धोना चाहिए। 2. पिप्पली : बराबर मात्रा में लिए गए 7 से 14 मिलीलीटर हरीतकी फल त्वक् द्राक्षा और पिप्पली फल के काढ़े को बच्चे को दूध पिलाने वाली मां को दिन में 2 बार देना चाहिए। 3. पटोलफल : बराबर मात्रा में 7 से 14 मिलीलीटर पटोलफल, मुस्तकमूल, द्राक्षा, गुडूची का तना और त्रिफला का काढ़ा बच्चे को दूध पिलाने वाली मां को दिन में 2 बार देना चाहिए। 4. मुस्तकमूल : मुस्तकमूल, हरिद्रा प्रकन्द ...
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Showing posts from December, 2017
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डब्बा रोग :=> परिचय :=> रात को सोते समय बच्चे की पसली में दर्द वाला बुखार बना रहना, दूध न पीना तथा बार-बार आंखे बंद करना डब्बा रोग के लक्षण हैं। बच्चों में यह रोग शीत वायु (ठंडी हवा) से और मां के दूध से होता है। इस रोग में मां और बच्चे दोनों को दवा लेनी चाहिए। विभिन्न औषधियों से उपचार=> 1. गोरोचन : एक चुटकी गोरोचन लेकर मां के दूध के साथ पीसकर हर 2-2 घंटे के बाद बच्चे को पिलाने से बच्चे की पसली चलना बंद हो जाती है। 2. लौंग : 7 लौंग को पानी में घिसकर बच्चे को देने से सर्दी के मौसम में होने वाला डब्बा रोग (पसली चलना) मिट जाता है। 3. सुहागा : 3 ग्राम भुना हुआ हरा-कसीस और 3 ग्राम आधा भुना हुआ सुहागा लेकर बकरी के दूध में पीसकर बाजरे के बराबर छोटी-छोटी गोलियां बना लें। इसकी एक या दो गोली मां के दूध के साथ बच्चे को देने से पसली चलना रुक जाती है। 10-10 ग्राम अपामार्ग, क्षार, नागरमोथा, अतीस, सुहागा और बड़ी हरड़ को थोड़े पानी में मिलाकर बच्चों को चटाने से डब्बा रोग (पसली चलना) समाप्त हो जाता है। 4. भांगरा : भांगरे के रस में असली घी मिलाकर ...
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अहिपूतना :=> परिचय : => यह रोग बच्चों में गंदगी के कारण उत्पन होता है जिसे अहिपूतना कहते हैं। इस प्रकार के रोग में बच्चों को स्वच्छ-साफ रखना अति आवश्यक होता है। इस रोग में बच्चों के तौलिया या नैपकीन गीला या गन्दा होने पर बदलते रहें। विभिन्न भाषाओं में रोग का नाम :=> हिंदी चुना लगना ललाई पड़ना। अंग्रेजी इरीदिमा, नैपकीनरेश, सोर बटकस। अरबी गुदा खजुयाती। बंगाली गुदाकच्छू। मलयालम कुट्टीकल्कु, गुड़ाथिलु। मराठी गुदकच्छू। उड़िया जाकूसी। तमिल आसन्नावायप्पदाइ। लक्षण : => इस रोग में शिशुओं (बच्चे) की गुदा के आस-पास गंदगी के कारण खुजली होने लगती है जो खुजली युक्त दरारें या पीवयुक्त फुंसियों में बदल जाती है जिसके कारण बच्चों में अहिपूतना रोग उत्पन्न होता है। विभिन्न औषधियों से उपचार :=> 1. लताकरंज : लताकरंज, त्रिफला और पटोल फल को बराबर लेकर घी में मिलाकर रखें। यह मिश्रण 1 से 2 ग्राम प्रतिदिन 2 से 3 बार बच्चों को खिलाने से रोग ठीक होता है। 2. हरिद्रकन्द : हरिद्रकन्द, त्रिफला, बबूल छाल, उदूम्बर, खदिर। इनमें से किसी एक का गर...
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बिस्तर पर पेशाब करना :=> परिचय :=> बच्चे दिन भर हर समय कुछ न कुछ खाते रहते हैं। बार-बार कुछ खाने से बच्चों की पाचन क्रिया खराब हो जाती है। कुछ बच्चे ज्यादा ठंडे पदार्थ खाते हैं तो कुछ बच्चे ज्यादा गरिष्ठ (भारी) खाने वाले पदार्थो का सेवन करते हैं। गरिष्ठ (भारी) भोजन बहुत देर में पचता है। गरिष्ठ (भारी) भोजन खाने वाले बच्चे रात में सोते समय ज्यादा पेशाब करते हैं। कुछ बच्चे दिन में ज्यादा समय खेलते-कूदते रहते हैं जिसकी वजह से बच्चे बुरी तरह से थक जाते हैं। ऐसे बच्चों को ज्यादा भूख लगती है और वह खाते ही सो जाते हैं। थकावट की वजह से बच्चे रात को सोते हुए बार-बार पेशाब करते हैं। कुछ मां-बाप काम की वजह से बच्चों को खाना देर से खिलाते हैं और फिर बच्चे खाना खाते ही बिस्तर पर चले जाते हैं और सो जाते हैं। इसलिए वह बच्चे रात को बिस्तर पर पेशाब जरूर करते है। कई अनुभवियों के अनुसार स्नायु विकृति के कारण बच्चे रात को सोते हुये बिस्तर पर पेशाब कर देते हैं। पेट में कीड़े होने पर भी बच्चे सोते हुए बिस्तर पर पेशाब कर देते हैं। स्नायु विकृति में शरीर में बहुत ज्यादा उत्तेजना हो...
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बालाक्षेप (बालग्रह) => परिचय : => बचपन में स्नायुतंत्र (नर्वस सिस्टम) बहुत ही नाजुक होता है जो बहुत ही जल्दी उत्तेजित हो जाता है। यह उत्तेजना ही आक्षेप (कंपन, ऐंठन, बेहोशी का दौरा) के रूप में प्रकट होता है। यह अक्सर चोट लगने के कारण, पेट में कीड़े होने के कारण और बच्चों के दांत निकलते समय होता है। यह एक दौरे के रूप में आता है। यह आक्षेप (बेहोशी का दौरा) बचपन में ही होता है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है यह रोग अपने आप दूर हो जाता है। इसलिए इसे बालाक्षेप कहते हैं। विभिन्न औषधियों से उपचार=> 1. शहद : लगभग 1 से 3 ग्राम तेजपत्ता के चूर्ण को शहद और अदरक के साथ चटाने से बच्चों के सभी रोगों में लाभ होता है। 2. एलुआ : लगभग 1-1 ग्राम कुन्दुर एलुआ, जुन्दवेस्तर लेकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें। यह 1 गोली रोजाना मां के दूध के साथ खिलाने से बच्चे को लाभ होता है। 3. सरसों : 125 मिलीलीटर सरसों का तेल गर्म कर लें। जब तेल गर्म हो जाए तब उसके अंदर 4 ग्राम असली सिन्दूर डालकर किसी लकड़ी की डंडी से चलाते रहें। जब पकने के बाद तेल का रंग गुलाबी सा हो जाए तो 6 ग्राम कालीमिर्च बार...
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बाल रोगों में लाभदायक जड़ी-बूटिया :=> अतिविषा (अतीस) का बाल रोगों में उपयोग=> संस्कृत में अतिविषा के नाम से प्रसिद्ध औषधि का नाम ही अतीस है। इसे प्रविविशा, विश्वा, श्रंणी, शुक्लकन्दा तथा शिशु भैषज्य आदि भी कहा गया है। हिंदी में अतीस को कड़वा भी कहते हैं। यह जहर का असर खत्म करने वाली होने के कारण भी अतिविषा कहलाती है। औषधि के रूप में इसका उपयोग प्राचीनकाल से ही होता रहा है। अतीस के तीन भेद हैं- काली अतीस, सफेद अतीस और अरुण कन्दा। इनमें से काली अतीस का असर ही सबसे ज्यादा होता है। यह तिक्तरस प्रधान कड़वी होती है। श्वेतकन्दा और अरुणकन्दा में अधिक कड़वापन नहीं होता। ``निघण्टु संग्रह´´ के अनुसार श्वेतकन्दा में गुणों की अधिकता है। कहीं-कहीं इसके 4 भेद माने गये हैं- काली, सफेद, लाल और पीला। यूनानी चिकित्सा पद्धति में भी इसके चार भेद माने गये हैं। अतीस में उत्तेजक, पाचन, ग्राही तथा सभी दोषों का हरण करने वाली होने की खासियत है। बाल रोगों में भी इसका उपयोग अधिकता से होता है। ज्वर (बुखार), खांसी और दस्त होने पर यह देना बहुत ही लाभकारी माना जाता है। बच्चे के दांत निकलने ...
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बालातीसार एवं रक्ततीसार :=> रक्तातिसार के विभिन्न भाषाओं में नाम :=> हिंदी बच्चों के खूनी दस्त अंग्रेजी डिसेन्ट्री असमी रक्तातिसार बंगाली रक्तातिसार, रक्तामास गुजराती लोही ना झाड़ा कन्नड़ मक्कलरक्त भेदी मलयालम रक्तथिसारम् मराठी रक्ती जुलाब उड़िया रक्तनोगा तमिल रक्थ भेदी लक्षण :=> रक्तातिसार (खूनी दस्त) रोग में बच्चे को पीला, नीला मल (टट्टी) या उसके साथ खून आता है। इससे शरीर में पानी की कमी हो जाती है। दूसरे लक्षण हैं- पिपासा (बार-बार प्यास लगना), जलन की अनुभूति (शरीर में जलन होना), मूर्च्छा (बेहोशी) और गुदापाक। बालातिसार के विभिन्न भाषाओं में नाम :=> हिंदी बच्चों के दस्त अंग्रेजी इन्फेन्टाइल डायरिया गुजराती बड़को ना झाड़ा कन्नड़ मक्कल भेदी पंजाबी बिच्चयां दे दस्त मराठी बालातिसार बंगाली बालातिसारम मलयालम बालातिसारम् उड़िया बचेर जंड असमी बालातिसार तमिल कुझन्डइ बेधी ...
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बच्चों का सूखा रोग :=> परिचय : => सूखा रोग (रिकेट्स) ज्यादातर उन बच्चों में होता है, जिनके शरीर में विटामिन `डी´ और कैल्शियम की कमी होती है। यदि पाचन-क्रिया (भोजन हजम करने की क्रिया) खराब होती है, तो बच्चों को दूध और अन्य ठोस पदार्थ आसानी से नहीं पच पाते हैं। ऐसी हालत में बच्चे का शरीर बिल्कुल सूख जाता है और कमर भी बिल्कुल पतली पड़ जाती है। बच्चा हर समय रोता रहता है। उसे पतले दस्त होने लगते हैं तथा दोनों ओर के स्तनों का मांस भी सूखता चला जाता है। त्वचा में झुरियां पड़ जाती हैं। यह रोग कुपोषण (कमजोरी), जिगर की खराबी और बच्चे को डराने के कारण हो जाता है। विभिन्न भाषाओं में नाम :=> हिंदी सूखा रोग मराठी मृदादोष तमिल कन्नम कन्नई असमी फक्करोग तेलगु पित्तबरुटा अंग्रेजी रिकेट्स गुजराती सुखारोग कन्नड़ अल्लेरोग, कूटिलवात मलयालम काना लक्षण : => अगर बच्चा एक साल का हो जाने पर भी खडे़ होने में असमर्थ (खड़ा न हो सके) हो तो ऐसी हालत में बच्चे को सूखा रोग (रिकेट्स) होने की संभावना ज्यादा रहती है। बच्चे को ...
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बच्चों के यकृत दोष => परिचय :=> बच्चों के खाने-पीने पर ध्यान नहीं देने से यकृत (जिगर) में खराबी आने से प्रदाह (जलन), शोथ (सूजन) आदि आ जाते हैं। विभिन्न औषधियों से उपचार=> 1. अजवायन : अजवायन को पानी में पीसकर कालानमक डालकर रखें। एक चम्मच बच्चों को देने से यकृत (लीवर) के अनेक रोग सही हो जाते हैं। शराब के साथ खुरासानी अजवायन को पीसकर यकृत (जिगर) की जगह पर ऊपर से लेप करने से यकृत का दर्द और सूजन मिट जाती है। 2. पपीता : पपीता और सेब खाने से बच्चों के यकृतदोष (जिगर खराब होने पर) के रोग ठीक हो जाते हैं। 3. तारपीन : यकृत (जिगर) की जगह पर दर्द होने पर तारपीन के तेल से मालिश करके गर्म कपड़े से सिंकाई करने से बच्चों की यकृत की बीमारी ठीक हो जाती है। 4. राई : राई को सिल पर पीसकर हल्का-हल्का गर्म लेप करने से लाभ होता है। 5. त्रिफला : यकृत (जिगर) में सूजन होने पर त्रिफले के हल्के गर्म काढे़ में शहद मिलाकर रोजाना सुबह-शाम 10 से 20 मिलीलीटर बच्चों को खिलाने से जिगर के रोग में आराम आता है। 6. मकोय : 20 मिलीलीटर मकोय का रस और 20 मिलीलीटर मूली के रस को मि...
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बच्चों का मधुमेह रोग :=> विभिन्न औषधियों से उपचार : 1. मेथी : 5 ग्राम मेथी को थोड़ा-सा कूटकर 200 मिलीलीटर पानी में उबालकर छानकर रखें। इस पानी को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पीने से मधुमेह रोग दूर होता है। 2. आंवला : आंवले के फूलों को छाया में सुखाकर, कूट-पीसकर चूर्ण बनाकर रखें। 1-1 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करने से बच्चे के मधुमेह रोग में लाभ होता है। आंवले और जामुन की गुठलियों को कूट-पीसकर चूर्ण बनायें। रोजाना 2-2 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करने से शर्करा आने में नियंत्रण होता है। 3. हल्दी : हल्दी को कूट-पीसकर बारीक चूर्ण बनाकर आधा-आधा ग्राम सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करने से मधुमेह रोग में लाभ होता है। 4. तरबर पंचाग : सूखे तरबर की पत्तियां, फूल, फल और मूल (जड़) 4-4 ग्राम लेकर मोटा-मोटा कूट लें। उसे 400 मिलीलीटर पानी में डालकर उबालें और 1/4 (50-50) ग्राम कर लें। इसे 30-60 मिलीलीटर की मात्रा में रोगी को सुबह-शाम दें। इससे बच्चे के मधुमेह में लाभ होगा। 5. त्रिफला : त्रिफला (हरड़, बहेड़ा, आंवला) का चूर्ण 2 ग्राम की मात्रा म...
आंखों के चारो और काले घेरे
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कारण :=> अक्सर भोजन में लौह (आयरन) और कैल्शियम की कमी के कारण आंखों के चारों और काले घेरे हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त अधिक गुस्सा करने, चिंता करने और कामुक विचारों यानी हमेशा सेक्स संबंधी बातों को सोचने से भी आंखों के चारों और काले घेरे हो जाते हैं। विभिन्न औषधियों से उपचार:=> 1. टमाटर : 1 चम्मच टमाटर का रस, आधा चम्मच नींबू का रस, 1 चुटकी हल्दी का बारीक चूर्ण और थोड़ा सा बेसन मिलाकर गाढ़ा लेप बना लें। इस लेप को आंखों के नीचे चारों तरफ काले घेरों पर 10 मिनट तक लगा रहने दें। इसे सूखने से पहले धीरे-धीरे मलने के बाद पानी से धो लें। इसे कुछ दिनों तक नियमित रूप से एक बार प्रयोग करें। इससे आंखों के नीचे काले घेरे मिट जाते हैं। पके हुए लाल टमाटर में विटामिन `ए´, `सी´ और लौह (आयरन) भरपूर मात्रा में होता है। अत: टमाटर का सेवन करना भी फायदेमंद रहता है। इसके अलावा रोज आधा गिलास गाजर का रस पीना या कच्ची गाजर खाना भी अच्छा रहता है। 125 मिलीलीटर टमाटर का रस लेकर उसमें आधा नींबू निचोड़ लें। फिर 5 से 7 पुदीने की पत्तियां पीसकर उसमें डाल दें तथा स्वाद के अनुसार स...
आंखों के रोग
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परिचय : => नींद आने पर ठीक समय पर न सोना, दिवाशयन (दिन में सोने से), रातों को जागना, दूर की चीजों पर नज़रे लगायें रखना, ज्यादा धूप और गर्मी से परेशान होकर बार-बार ठंडे पानी में कूद जाना, आग के पास बैठे रहना, हर समय रोना, आंसुओं को रोकना, ज्यादा बारीक अक्षरों को पढ़ना या बहुत बारीक चीजों को देखना, हर समय दुखी रहना, आंखों में धूल या धुआं चले जाना, बहुत ज्यादा संभोग करने से, टट्टी और पेशाब को अधिक समय तक रोकना, आंख में या दिमाग में चोट लगना, ज्यादा तेज गाड़ी की सवारी करना तथा गंदगी में रहने से कई प्रकार के आंखों के रोग पैदा होते हैं। लक्षण :=> आंखों के रोग अनेक प्रकार हैं इसलिए उसके लक्षण भी अलग-अलग प्रकार के होते हैं, जैसे- दृष्टिमांद्य (आंखों की रोशनी कम होना), दिनौंधी (दिन में दिखाई न देना), रतौंधी (रात को दिखाई न देना), आंखों का लाल होना, सूजन आना, आंखों में कीचड़ जमना, फूली, माड़ा, नाखूना, परवाल (आंखों की बरौनी के बालों का अंदर की तरफ मुड़ना), पलकों के बाल गिरना, मोतियाबिंद, आंखों की खुजली, आंखों से पानी बहना, नासू...
आंखों का फुला धुंधलापन
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परिचय : => इस रोग में रोगी को ऐसा महसूस होता है जैसे कि मानो आंखों के आगे छोटी-छोटी फिटिंगियां या छोटा सूत जैसा कुछ धूल कण उड़ रहा है। जाला पड़ने का कारण : => पुराना बुखार, अधिक सेक्स क्रिया, खून की कमी आदि कई कारणों से यह रोग होता है। यह रोग शरीर में अधिक कमजोरी आने के कारण से भी हो सकता है। विभिन्न औषधियों से उपचार:=> 1. अरण्डी का तेल : 30 मिलीलीटर अरण्डी के तेल में 25 बूंद कारबोलिक एसिड को मिलाकर सुबह-शाम दो-दो बूंद आंखों में डालें। इससे आंखों के फूला, जाला आदि में लाभ मिलता है। 2. हल्दी : 5-5 ग्राम शुद्ध शोराकलमी और अम्बा हल्दी को पीसकर कपडे़ में छानकर आंखों में 7 दिनों तक लगातार सलाई से लगाएं। हल्दी के एक टुकड़े को नींबू में सुराख करके अंदर रख दें। नींबू को धागे से बांधकर लटका दें। नींबू जब सूख जाये तो उसमें से हल्दी को निकालकर और पीसकर पानी में मिलाकर आंखों में सुबह-शाम लगाने से आंख के जाले में रोगी को लाभ होगा। 3. आलू : कच्चे आलू को पत्थर पर पीसकर उसका रस निकाल लें।...
सब्ज मोतिया (ग्लूकोमा)
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परिचय : => इसमें रोगी को सफेद रोशनी के चारों ओर इन्द्रधनुष के जैसा अलग-अलग रंग का गोल मण्डल दिखाई पड़ता है। आंखों की रोशनी कम हो जाती है और सब कुछ धुंधला सा दिखाई देता है। आंखों में हल्का सा दर्द होता है। इसमें आंख की पुतलियों में कठोरता आ जाती है। लक्षण : => सब्ज मोतियाबिंद में आंख में पानी भर जाने से आंख का कोया (आंख के अंदर का काला भाग) पत्थर जैसा हो जाता है। इस रोग में रोशनी के चारों ओर अनेक रंग दिखाई देने लगते हैं जो इस रोग के शुरू होने के लक्षण हैं। कभी-कभी यह रोग अचानक हो जाता है जैसे कि सोते समय व्यक्ति की आंखें ठीक होती हैं पर रात को अचानक आंखों में तेज दर्द होने लगता है और सुबह तक उसे दिखाई देना बंद हो जाता है। कुछ लोगों की आंखों में धीरे-धीरे पानी भरने लगता है, दोनों आंखें सफेद रंग की हो जाती हैं और आंखों की रोशनी चली जाती है। कापरिचय : इसमें रोगी को सफेद रोशनी के चारों ओर इन्द्रधनुष के जैसा अलग-अलग रंग का गोल मण्डल दिखाई पड़ता है। आंखों की रोशनी कम हो जाती है और सब कुछ धुंधला सा दिखाई देता है। आंखों में हल...
रतौन्धी
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परिचय: => बचपन में बच्चों को अच्छा और पौष्टिक भोजन न मिल पाने के कारण उनमें शारीरिक कमजोरी आ जाती है जिससे आंखों की रोशनी भी कम हो जाती है। बच्चों को स्कूल में ब्लैकबोर्ड पर लिखे अक्षर देखने में भी बहुत परेशानी होती है। लक्षण : => रतौंधी रोग (रात में न दिखाई देना) के शिकार रोगियों को दिन में साफ दिखाई देता है। लेकिन शाम होने पर धुंधला दिखाई देने लगता है। अगर इस रोग की चिकित्सा में देरी की जाये तो कुछ ही समय में दिखाई देना बिल्कुल कम हो जाता है। विभिन्न औषधियों से उपचार:=> 1. अपामार्ग (चिरचिटा) : अपामार्ग (चिरचिटा) की जड़ को छाया में सुखाकर और फिर उसका चूर्ण बनाकर 5 ग्राम की मात्रा में रात को पानी के साथ खाने से 4-5 दिनों में ही रतौंधी रोग में आराम आने लगता है। 10 ग्राम अपामार्ग की जड़ को शाम के समय भोजन करने के बाद रोजाना चबाकर सो जाने से 2 से 4 दिनों के बाद ही रतौंधी रोग समाप्त हो जाता है। अपामार्ग (चिरचिटा) की जड़ को गाय के पेशाब में घिसकर आंखों में लगाने से रतौंधी (रात में दिखाई न देना)...
आंख का नासूर
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परिचय : => आंखों में लैक्रीमल नाम की एक ग्रंथि में जख्म होने से आंखों में लगातार मवाद निकलता रहता है जो आंख को बार-बार साफ करने पर भी लगा रहता है। इसके साथ आंख से पानी भी निकलता रहता है। आंखों का कोना बराबर सफेद या पीले रंग के मवाद से भरा होता है। इसमें यह जरूरी नहीं है कि आंख लाल ही हो क्योंकि जलन पुरानी होने पर ही जख्म का रूप लेता है।mal विभिन्न औषधियों से उपचार: => 1. ममीरा : ममीरा को रोजाना आंखों में काजल की तरह लगाने से आंखों के रोगों में लाभ होता है। 2. सेलखड़ी : सेलखड़ी (संगजराहत) के दो टुकड़ों को एरण्ड के तेल में घिसकर लेप तैयार कर लें। इसमें रूई की बत्ती बनाकर नासूर में लगाने से रोग में पूरा लाभ होता है। 3. समुद्रशोष : समुद्रशोष को पानी में पीसकर रूई की बत्ती बनाकर आंखों के नासूर में लगाने से लाभ मिलता है। 4. शहद : शुद्ध और साफ शहद को आग पर गर्म करने के लिए रख दें, और इसमें समुद्रझाग को पीसकर मिला दें फिर आग पर से उतार लें। इसकी बत्ती बनाकर आंखों के नासूर में रखने से घाव भरक...
आंखों का दर्द
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परिचय :=> कभी-कभी ऐसा होता है कि आंखों की जांच करवाने पर आंखों में कोई रोग नहीं निकलता और न ही आंखें लाल होती हैं और न ही सूजन या कोई दूसरा रोग होता है। फिर भी चक्षुगोलकों (आंखों के गोलाकार भाग में) में दर्द होता है जो स्नायविक कारणों से होता है। विभिन्न औषधियों से उपचार:=> 1. शहद : आंखों में किसी चीज के गिर जाने से अगर दर्द हो रहा हो तो शहद या एरंड तेल (कस्टर आयल) की 1 से 2 बूंद आंखों में डालने से आंखों में गिरी हुई चीज बाहर आ जायेगी और आंखों में कुछ चुभना दूर हो जायेगा। शहद के साथ निबौली (नीम का फल) के गूदे को मिलाकर आंखों में अंजन (काजल के समान लगाना) करना चाहिए। शुद्ध शहद को सलाई या अंगुली की सहायता से काजल की तरह आंखों में लगाने से आंखों के दर्द में लाभ होता है। 2. आंवला : आंवले के बीजों के काढ़े से आंखों को धोने से आंखों का दर्द दूर होता है। आंवले का चूर्ण रात भर जिस पानी में भिगोया गया हो उस पानी से आंखों को धोने से भी लाभ होता है। 3. चम्पा : चम्पा के फूलों को तिल के तेल में पीसकर सिर पर बांध लें और पलकों पर लेप करें। इससे आंखों का दर्द दू...
आंखों के रोहे,फुले कुकरे
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परिचय :=> इस रोग में आंखों के ऊपर की पलकों के अंदर की परत पर छोटे-छोटे लाल दाने हो जाते हैं जो आंखों में चुभते हैं। आंखों के अंदर ऐसा लगता है जैसे कुछ अटक रहा है। आंखों से पानी निकलने लगता है जो कुछ दिनों के बाद गाढ़ा हो जाता है। पलकों में सूजन ज्यादा हो जाने पर पलकों की खाल अंदर की ओर मुड़ जाती है। जिससे बरौनियां (पलकों के बाल) कनीनिका पर रगड़ खाने लगती हैं इससे कनीनिका जख्मी और धुंधली हो जाती है। विभिन्न औषधियों से उपचार:=> 1. सत्यानाशी : सत्यानाशी (पीला धतूरा) को दूध घी में मिलाकर लगाने से आंखों के रोहे, फूले आदि विभिन्न रोग समाप्त हो जाते हैं। 2. शहद : अपामार्ग की जड़ को शहद में घिसकर लगाने से आंख के फूले समाप्त हो जाते हैं। 3. तोरई : तोरई (झिगनी) के ताजे पत्तों का रस निकालकर रोजाना 2 से 3 बूंदें दिन में 3 से 4 बार आंखों में डालें। इससे आंखों के रोहे (पोथकी) में लाभ मिलता है। 4. ममीरा : ममीरा को आंखों में लगाने से आंखों के बहुत से रोगों में आराम आता है। 5. चिरमिटी (करंजनी, गुंजा) : यह दो तरह का होता है। लाल को रक्त गुंजा और सफेद को श्वेत गुंजा क...
आंखों की पलकों का फड़कना
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परिचय- परिचय- स्नायविक कम्पन के कारण कभी-कभी आंखों की पलकें अपने आप कांपने लगती हैं जिसे नियंत्रित नहीं किया जा सकता। यह कम्पन कभी-कभी इतना अधिक होता है कि देखने में कठिनाई होती है। कुछ लोगों का मानना है कि पुरुषों की दाहिनी (सीधी) आंख और महिलाओं की बायीं (उल्टी) आंख का फड़कना या कम्पन शुभ संकेत है। विभिन्न औषधियों से उपचार: => 1. जटामांसी : जटामांसी का काढ़ा लगभग 28 मिलीलीटर से 55 मिलीलीटर तक की मात्रा में रोजाना 2 से 3 बार पीने से पलकों का कम्पन (फड़कना) कम हो जाता है। 2. लहसुन : 4 जवा (कली) लहसुन और 4 छिलके रहित एरण्ड के बीज लें, फिर उन्हें पीसकर दूध में अच्छी तरह उबालकर रोजाना रात को पिलाने से पलकों का कम्पन (फड़कना) ठीक हो जाता है। सबसे पहले लहसुन को तेल में पका लें। उसके बाद उस तेल से पलकों की मालिश करने तथा वायविडंग और लहसुन की खीर बनाकर सेवन करने से पलकों का फड़कना ठीक हो जाता है। 3. महानींबू : 10 से 20 मिलीलीटर महानींबू (चकोतरा) का पत्र स्वरस (पत्तों का रस) पीने से पलकों का कम्पन (फड़कना) ठीक हो जाता है। महानींबू बिजौरा नींबू...