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कुकूणक रोग :=>  विभिन्न भाषाओं में नाम :=> हिंदी किथैवा अंग्रेजी कंजक्टिवाइटिस कन्नड़ मवकल अरेगन्नु मलयालम कुटि्टकलकुल्लकन्नुनोवु असम कुकुणक मराठी कुकुणव तमिल योगिनिसवी थविथम् तमिल योगिनिसवी थविथम् तेलगू आविरी लक्षण :=>        कुकूणक दूध पीने वाले बच्चों का रोग है। इसमें रोगी का वर्त्म (पलक) सूजन वाला, लालिमा, कंडू (खुजली) और पानी बहने वाला होता है। बालक लगातार अपना ललाट (माथा), नेत्र (आंख) और नाक रगड़ता रहता है और धूप नहीं देख सकता है। विभिन्न औषधियों से उपचार=> 1. आमलकी फल : आमलकी फल त्वक (चूर्ण), लकुच फल और जम्बू के पत्तों के काढ़े से आंखों को धोना चाहिए। 2. पिप्पली : बराबर मात्रा में लिए गए 7 से 14 मिलीलीटर हरीतकी फल त्वक् द्राक्षा और पिप्पली फल के काढ़े को बच्चे को दूध पिलाने वाली मां को दिन में 2 बार देना चाहिए। 3. पटोलफल : बराबर मात्रा में 7 से 14 मिलीलीटर पटोलफल, मुस्तकमूल, द्राक्षा, गुडूची का तना और त्रिफला का काढ़ा बच्चे को दूध पिलाने वाली मां को दिन में 2 बार देना चाहिए। 4. मुस्तकमूल : मुस्तकमूल, हरिद्रा प्रकन्द ...
डब्बा रोग :=> परिचय :=>          रात को सोते समय बच्चे की पसली में दर्द वाला बुखार बना रहना, दूध न पीना तथा बार-बार आंखे बंद करना डब्बा रोग के लक्षण हैं। बच्चों में यह रोग शीत वायु (ठंडी हवा) से और मां के दूध से होता है। इस रोग में मां और बच्चे दोनों को दवा लेनी चाहिए। विभिन्न औषधियों से उपचार=> 1. गोरोचन : एक चुटकी गोरोचन लेकर मां के दूध के साथ पीसकर हर 2-2 घंटे के बाद बच्चे को पिलाने से बच्चे की पसली चलना बंद हो जाती है। 2. लौंग : 7 लौंग को पानी में घिसकर बच्चे को देने से सर्दी के मौसम में होने वाला डब्बा रोग (पसली चलना) मिट जाता है। 3. सुहागा : 3 ग्राम भुना हुआ हरा-कसीस और 3 ग्राम आधा भुना हुआ सुहागा लेकर बकरी के दूध में पीसकर बाजरे के बराबर छोटी-छोटी गोलियां बना लें। इसकी एक या दो गोली मां के दूध के साथ बच्चे को देने से पसली चलना रुक जाती है। 10-10 ग्राम अपामार्ग, क्षार, नागरमोथा, अतीस, सुहागा और बड़ी हरड़ को थोड़े पानी में मिलाकर बच्चों को चटाने से डब्बा रोग (पसली चलना) समाप्त हो जाता है। 4. भांगरा : भांगरे के रस में असली घी मिलाकर ...
अहिपूतना :=> परिचय : =>          यह रोग बच्चों में गंदगी के कारण उत्पन होता है जिसे अहिपूतना कहते हैं। इस प्रकार के रोग में बच्चों को स्वच्छ-साफ रखना अति आवश्यक होता है। इस रोग में बच्चों के तौलिया या नैपकीन गीला या गन्दा होने पर बदलते रहें। विभिन्न भाषाओं में रोग का नाम :=> हिंदी चुना लगना ललाई पड़ना। अंग्रेजी इरीदिमा, नैपकीनरेश, सोर बटकस। अरबी गुदा खजुयाती। बंगाली गुदाकच्छू। मलयालम कुट्टीकल्कु, गुड़ाथिलु। मराठी गुदकच्छू। उड़िया जाकूसी। तमिल आसन्नावायप्पदाइ। लक्षण : => इस रोग में शिशुओं (बच्चे) की  गुदा के आस-पास गंदगी के कारण खुजली होने लगती है जो खुजली युक्त दरारें या पीवयुक्त फुंसियों में बदल जाती है जिसके कारण बच्चों में अहिपूतना रोग उत्पन्न होता है। विभिन्न औषधियों से उपचार :=> 1. लताकरंज : लताकरंज, त्रिफला और पटोल फल को बराबर लेकर घी में मिलाकर रखें। यह मिश्रण 1 से 2 ग्राम प्रतिदिन 2 से 3 बार बच्चों को खिलाने से रोग ठीक होता है। 2. हरिद्रकन्द : हरिद्रकन्द, त्रिफला, बबूल छाल, उदूम्बर, खदिर। इनमें से किसी एक का गर...
बिस्तर पर पेशाब करना :=>  परिचय :=>    बच्चे दिन भर हर समय कुछ न कुछ खाते रहते हैं। बार-बार कुछ खाने से बच्चों की पाचन क्रिया खराब हो जाती है। कुछ बच्चे ज्यादा ठंडे पदार्थ खाते हैं तो कुछ बच्चे ज्यादा गरिष्ठ (भारी) खाने वाले पदार्थो का सेवन करते हैं। गरिष्ठ (भारी) भोजन बहुत देर में पचता है। गरिष्ठ (भारी) भोजन खाने वाले बच्चे रात में सोते समय ज्यादा पेशाब करते हैं। कुछ बच्चे दिन में ज्यादा समय खेलते-कूदते रहते हैं जिसकी वजह से बच्चे बुरी तरह से थक जाते हैं। ऐसे बच्चों को ज्यादा भूख लगती है और वह खाते ही सो जाते हैं। थकावट की वजह से बच्चे रात को सोते हुए बार-बार पेशाब करते हैं। कुछ मां-बाप काम की वजह से बच्चों को खाना देर से खिलाते हैं और फिर बच्चे खाना खाते ही बिस्तर पर चले जाते हैं और सो जाते हैं। इसलिए वह बच्चे रात को बिस्तर पर पेशाब जरूर करते है। कई अनुभवियों के अनुसार स्नायु विकृति के कारण बच्चे रात को सोते हुये बिस्तर पर पेशाब कर देते हैं। पेट में कीड़े होने पर भी बच्चे सोते हुए बिस्तर पर पेशाब कर देते हैं। स्नायु विकृति में शरीर में बहुत ज्यादा उत्तेजना हो...
बालाक्षेप (बालग्रह) => परिचय :  =>     बचपन में स्नायुतंत्र (नर्वस सिस्टम) बहुत ही नाजुक होता है जो बहुत ही जल्दी उत्तेजित हो जाता है। यह उत्तेजना ही आक्षेप (कंपन, ऐंठन, बेहोशी का दौरा) के रूप में प्रकट होता है। यह अक्सर चोट लगने के कारण, पेट में कीड़े होने के कारण और बच्चों के दांत निकलते समय होता है। यह एक दौरे के रूप में आता है। यह आक्षेप (बेहोशी का दौरा) बचपन में ही होता है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है यह रोग अपने आप दूर हो जाता है। इसलिए इसे बालाक्षेप कहते हैं। विभिन्न औषधियों से उपचार=> 1. शहद : लगभग 1 से 3 ग्राम तेजपत्ता के चूर्ण को शहद और अदरक के साथ चटाने से बच्चों के सभी रोगों में लाभ होता है। 2. एलुआ : लगभग 1-1 ग्राम कुन्दुर एलुआ, जुन्दवेस्तर लेकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें। यह 1 गोली रोजाना मां के दूध के साथ खिलाने से बच्चे को लाभ होता है। 3. सरसों : 125 मिलीलीटर सरसों का तेल गर्म कर लें। जब तेल गर्म हो जाए तब उसके अंदर 4 ग्राम असली सिन्दूर डालकर किसी लकड़ी की डंडी से चलाते रहें। जब पकने के बाद तेल का रंग गुलाबी सा हो जाए तो 6 ग्राम कालीमिर्च बार...
बाल रोगों में लाभदायक जड़ी-बूटिया :=> अतिविषा (अतीस) का बाल रोगों में उपयोग=>  संस्कृत में अतिविषा के नाम से प्रसिद्ध औषधि का नाम ही अतीस है। इसे प्रविविशा, विश्वा, श्रंणी, शुक्लकन्दा तथा शिशु भैषज्य आदि भी कहा गया है। हिंदी में अतीस को कड़वा भी कहते हैं। यह जहर का असर खत्म करने वाली होने के कारण भी अतिविषा कहलाती है। औषधि के रूप में इसका उपयोग प्राचीनकाल से ही होता रहा है।    अतीस के तीन भेद हैं- काली अतीस, सफेद अतीस और अरुण कन्दा। इनमें से काली अतीस का असर ही सबसे ज्यादा होता है। यह तिक्तरस प्रधान कड़वी होती है। श्वेतकन्दा और अरुणकन्दा में अधिक कड़वापन नहीं होता। ``निघण्टु संग्रह´´ के अनुसार श्वेतकन्दा में गुणों की अधिकता है। कहीं-कहीं इसके 4 भेद माने गये हैं- काली, सफेद, लाल और पीला। यूनानी चिकित्सा पद्धति में भी इसके चार भेद माने गये हैं। अतीस में उत्तेजक, पाचन, ग्राही तथा सभी दोषों का हरण करने वाली होने की खासियत है। बाल रोगों में भी इसका उपयोग अधिकता से होता है। ज्वर (बुखार), खांसी और दस्त होने पर यह देना बहुत ही लाभकारी माना जाता है। बच्चे के दांत निकलने ...
बालातीसार एवं रक्ततीसार :=> रक्तातिसार के विभिन्न भाषाओं में नाम :=> हिंदी बच्चों के खूनी दस्त  अंग्रेजी डिसेन्ट्री  असमी रक्तातिसार  बंगाली रक्तातिसार, रक्तामास  गुजराती लोही ना झाड़ा  कन्नड़ मक्कलरक्त भेदी  मलयालम रक्तथिसारम्  मराठी रक्ती जुलाब  उड़िया रक्तनोगा  तमिल रक्थ भेदी  लक्षण :=>          रक्तातिसार (खूनी दस्त) रोग में बच्चे को पीला, नीला मल (टट्टी) या उसके साथ खून आता है। इससे शरीर में पानी की कमी हो जाती है। दूसरे लक्षण हैं- पिपासा (बार-बार प्यास लगना), जलन की अनुभूति (शरीर में जलन होना), मूर्च्छा (बेहोशी) और गुदापाक। बालातिसार के विभिन्न भाषाओं में नाम :=> हिंदी बच्चों के दस्त  अंग्रेजी इन्फेन्टाइल डायरिया  गुजराती बड़को ना झाड़ा  कन्नड़ मक्कल भेदी  पंजाबी बिच्चयां दे दस्त  मराठी बालातिसार  बंगाली बालातिसारम  मलयालम बालातिसारम्  उड़िया बचेर जंड  असमी बालातिसार  तमिल कुझन्डइ बेधी ...